वन विभाग की उत्पादन शाखा का गठन मध्यप्रदेश शासन वन विभाग के आदेश क्रमांक 9886/10/1/78 दिनांक 28.09.1978 से किया गया था, इसका उद्देश्य वनोपज के राजकीय व्यापार को नियंत्रित करना था । उत्पादन शाखा मार्कशुदा ईमारती काष्ठ खैर एवं बांस के कूपों के विदोहन, परिवहन, काष्ठागारों, जलाऊ डिपो एवं बांसागारों के प्रबंधन का कार्य करती है । मध्यप्रदेश में 11 उत्पादन वनमण्डल है। शेष वन क्षेत्रों में उत्पाादन का कार्य क्षेत्रीय वनमण्डल के अधीन पदस्थ उत्पादन अमले द्वारा किया जाता है। विगत वर्ष में उत्पादन शाखा द्वारा विदोहन एवं प्राप्त राजस्व की जानकारी निम्नानुसार है-
2017-18 | 1,74,372 | 1,24,686 | 14,594 | 13,668 | 1097.63 |
टीप: एक विक्रय इकाई = 2400 रनिंग मीटर | |||||
वर्ष | इमारती काष्ठ (घ.मी. में) | जलाऊ चट्टे (2*1*1 मीटर) | औद्योगिक बांस (विक्रय इकाई) | व्यापारिक बांस (विक्रय इकाई) | प्राप्त राजस्व (करोड रूपये में) |
कार्य आयोजना द्वारा निर्धारित कूपों में मार्किंग के उपरांत कूप उत्पादन अमले को सौंपा जाता है। उपरोक्त कार्य पर निगरानी रखने के लिये वन रक्षक/वनपाल स्तर के कर्मचारी को कूप प्रभारी का कार्य दिया जाता है। उत्पादन अमला चिन्हांकित वृक्षों का पातन करता है एवं व्याावसायिक मांग के अनुसार वृक्ष का लगुण (लॉगिंग) की जाती है। लगुण उपरांत ईमारती काष्ठ के पतले सिरे पर लट्ठे की लम्बाई एवं छाल उतारकर मध्य गोलाई का नाप लेकर अंकित किया जाकर थप्पियों में सम्मिलित किया जाता है। इसे रजिस्टर में अंकित कर लकड़़ी की थप्पी बनाई जाती है लम्बाई एवं गोलाई के अनुसार काष्ठ को लट्ठे, बल्ली एवं डेंगरी में वर्गीकृत किया जाता है। शेष काष्ठ जलाऊ में वर्गीकृत कर इसका चट्टा बनाया जाता है। जो 2*1*1 मीटर का होता है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि ईमारती काष्ठ जलाऊ चट्टों में नहीं रखी जाए। कूप प्रभारी यह भी सुनिश्चित करते हैं कि ठूंठ पर प्राप्त ईमारती काष्ठ का विवरण तथा पातन क्रमांक अंकित हो एवं कूप का विशिष्ट चिन्ह जिसे हैमर भी कहा जाता है, अंकित हो ताकि वृक्ष वैध रूप से काटा गया है यह सुनिश्चित किया जा सके। ठूंठ की ड्रेसिंग का कार्य मजदूरों द्वारा किया जाता है ताकि उससे पीके प्राप्त हो एवं एक नया वृक्ष बन सके। मजदूरों को वन वृत्त स्तर पर निर्धारित जॉब दर से भुगतान किया जाता है। विदोहन प्रारंभ करने के पूर्व वनों में अस्थाई मार्ग बनाये जाते हैं ताकि ट्रक काष्ठ थप्पियों तक पहुंच सके। काष्ठ को ट्रक में लादकर इसका विवरण रजिस्टरों में अंकित किया जाता है एवं कार्टिंग चालान के माध्यम से डिपो में परिवहन किया जाता है।
डिपो में काष्ठ की नग संख्या एवं लम्बाई गोलाई का पुन: मापन किया जाता है एवं इसे काष्ठ के मोटे सिरे पर अंकित किया जाता है। काष्ठ को प्रजाति, लम्बाई, गोलाई एवं श्रेणी के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है एवं थप्पी में रखा जाता है। प्रयास किया जाता है कि एक प्रजाति की लम्बाई, गोलाई एवं श्रेणी की थप्पियों का लॉट बनाया जाए एवं इसे एक साथ प्रदर्शित किया जाए। इस लॉट की अपसेट प्राइस बनाई जाती है एवं इसे पूर्व निर्धारित तिथि पर नीलाम किया जाता है। नीलाम घोष विक्रय की प्रक्रिया है जिसमें विभिन्न स्थानों से इच्छुक क्रेता भाग लेने के लिये आते हैं। अधिकतम बोली देने वाले पंजीकृत क्रेता को लॉट बेचा जाता है। लॉट की पूर्ण राशि जमा करने पर क्रेता को लॉट का परिदान दिया जाता है।
बांस का अधिकांश उत्पादन बालाघाट जिले में सीमित हो गया है। शेष जिलों में बांस के वृक्षारोपण से बांस का उत्पादन प्राप्त हो रहा है। बांस के कूप उत्पादन अमले को स्थानांतरित होने के उपरांत बांस विदोहन के निर्देशों के तहत करला (प्रथम वर्ष का बांस) महिला (द्वितीय वर्ष का बांस) एवं पकिया (दो वर्ष से अधिक का पका हुआ बांस) को बांस कटाई नियमों के आधार पर पके हुए बांस की उपलब्धता के अनुसार काटा जाता है इसके अतिरिक्त सूखे एवं क्षतिग्रस्त बांस भी काटकर निकाले जाते हैं। 4-60 मीटर से लम्बा बांस व्याापारिक बांस कहलाता है एवं दो तथा एक मीटर के बांस के टुकडे औद्योगिक बांस के रूप में वर्गीकृत किये जाते हैं। प्राप्त बांसों को वर्ग एवं लम्बाई के अनुसार 20 बांस के बंडल में सबई रस्सी से बांधा जाता है एवं थप्पी के रूप में सड़क के किनारे जमाया जाता है। इन बांसों को कार्टिंग चालान के माध्यम से बांसागार भेजा जाता है, जहां निस्तार के माध्यैम से अथवा नीलाम द्वारा इसे बेचा जाता है।
राज्य शासन की निस्तार नीति के तहत वनों के समीप रहने वाले नागरिकों को उनकी निजी उपयोग के लिये ईमारती काष्ठ का प्रदाय किया जाता है। प्रदाय निस्ताार डिपो के माध्यम से किया जाता है एवं वनोपज के लिए वृत्त के वन संरक्षक द्वारा दरों का निर्धारण किया जाता है। ये दरें बाजार दर से कम होती है इसी तरह श्मशान घाट के लिये भी जलाऊ काष्ठ उपलब्ध कराया जाता है।